Monday 21 September 2015

इलायची

परिचय :

इलायची हमारे भारत देश तथा इसके आसपास के गर्म देशों में ज्यादा मात्रा में पायी जाती है। इलायची ठण्डे देशों में नहीं पायी जाती है। इलायची मालाबार, कोचीन, मंगलौर तथा कर्नाटक में बहुत पैदा होती है। इलायची के पेड़ >हल्दी के पेड़ के समान होते हैं। मालाबार में इलायची खुद ही पैदा होती है। मालाबार से हर वर्ष बहुत सी इलायची इंग्लैण्ड तथा दूसरे देशों के लिए भेजी जाती है। इलायची स्वादिष्ट होती है। आमतौर पर इसका उपयोग खाने के पदार्थों में किया जाता है। इलायची छोटी और बड़ी दो प्रकार की होती है। छोटी इलायची कड़वी, शीतल, तीखी, लघु, सुगन्धित, पित्तकर, गर्भपातक और रूक्ष होती है तथा वायु (गैस), कफ (बलगम),अर्श (बवासीर),क्षय (टी.बी.), विषदोष, बस्तिरोग (नाभि के नीचे का हिस्सा), कंठ (गले) की बीमारी, मूत्रकृच्छ (पेशाब करने में कष्ट या जलन होना), अश्मरी (पथरी) औरजख्म का नाश करती है। इलायची को रात को नहीं खाना चाहिए। रात को इलायची खाने से कोढ़ (कुष्ठ) हो जाता है। बड़ी इलायची तीखी, रूक्ष, रुचिकारी, सुगन्धित, पाचक, शीतल और पाचनशक्तिवर्द्धक होती है। यह कफ, पित्त, रक्त रोग, हृदय रोग, विष दोष, उल्टी, जलन और मुंहदर्द तथा सिर के दर्द को दूर करता है।
विभिन्न भाषाओं में नाम :
संस्कृत एला
हिन्दी इलायची
मराठी बेलची
गुजराती एलची
बंगाली एलाच
अंग्रेजी लेजर कारडामोम
लैटिन एलिटेरिया कार्डेमोमम
रंग : छोटी इलायची का छिलका सफेद और दाना हरा व काला होता है। बड़ी इलायची का दाना बहुत ही काला होता है।
स्वाद : बड़ी इलायची तीखी सुगन्धित होती है। छोटी इलायची तीखी, स्वादिष्ट और सुगन्धित होती है।
स्वरूप : छोटी इलायची के क्षुप (झाड़ीनुमा पौधा) अदरक के समान होती है। इसके फूल सफेद और लाल होते हैं।
स्वभाव : छोटी इलायची खाने में शीतल होती है।
हानिकारक : छोटी इलायची का अधिक मात्रा में उपयोग आन्तों के लिए हानिकारक होता है तथा इलायची को रात को नहीं खाना चाहिए। रात को इलायची खाने से कोढ़ हो जाता है।
दोषों को दूर करने वाला : कतीरा और वंशलोचन इलायची के दोषों को दूर करते हैं।
तुलना : छोटी इलायची की तुलना लौंग से की जा सकती है।
मात्रा : छोटी इलायची 1 से 3 ग्राम की मात्रा में सेवन कर सकते हैं।

गुण : छोटी इलायची कफ, खांसी, श्वास, बवासीर और मूत्रकृच्छ नाशक है। यह मन को प्रसन्न करती है। घाव को शुद्ध करती है। हृदय और गले की मलीनता को दूर करती है। हृदय को बलवान बनाती है। मानसिक उन्माद, उल्टी और जीमिचलाना को दूर करती है। मुंह की दुर्गन्ध को दूर करके सुगन्धित करती है और पथरी को तोड़ती है। बड़ी इलायची के गुण भी छोटी इलायची के गुण के समान होते हैं। पीलिया, बदहजमी, मूत्रविकार,सीने में जलन, पेट दर्द, उबकाई, हिचकी, दमा, पथरी और जोड़ों के दर्द में इलायची का सेवन लाभकारी होता है।

Sunday 20 September 2015

ईसबगोल

परिचय :

ईसबगोल की व्यवसायिक रूप से खेती उत्तरी गुजरात के मेहसाना और बनासकाठा जिलों में होती है। वैसे ईसबगोल की खेती उ.प्र, पंजाब, हरियाणा प्रदेशों में भी की जाती है। ईसबगोल का पौधा तनारहित, मौसमी, झाड़ीनुमा होता है। ईसबगोल की ऊंचाई लगभग 10 से 30 सेमी होती है। ईसबगोल के पत्ते 9 से 27 सेमी तक लम्बे होते हैं। इसका फूल गेहूं की बालियों के समान होता है। जिस पर ये छोटे-2, लम्बे, गोल, अण्डाकार मंजरियों में से निकलते हैं। फूलों में नाव के आकार के बीज लगते हैं। बीजों से लगभग 26-27 प्रतिशत भूसी निकलती है। भूसी पानी के संपर्क में आते ही चिकना लुबाव बना लेती है जो बिना स्वाद और गंध का होता है। औषधि रूप में ईसबगोल बीज और उसकी भूसी का उपयोग करते हैं।
विभिन्न भाषाओं में नाम :
हिन्दी ईसबगोल
संस्कृत ईषढ़गोल
मराठी ईसबगोल
गुजराती उथमुजीरू
बंगाली इसपूबगल
अंग्रेजी स्पोगल सीड्स
लैटिन प्लैण्टेगो ओवाटा
रंग : ईसबगोल का रंग लाल सफेदी लिए हुए होता है।
स्वाद : इसका स्वाद तीखा और कड़वा होता है।
स्वभाव : ईसबगोल का स्वभाव शीतल होता है।
हानिकारक : इसका अधिक मात्रा में सेवन करने से >भूख कम लगती है।
सावधानी : ईसबगोल का अधिक मात्रा में सेवन करने से कब्ज का रोग हो जाता है। जठराग्नि का मंद (भोजन पचाने की क्रिया का कम होना) होना भी सम्भव है। इसके सेवन के समय प्रचुर मात्रा में पेय पदार्थों का सेवन करें। गर्भवती औरतों को इसका सेवन सावधानी से करना चाहिए। ईसबगोल के बीजों या भूसी को 1 कप पानी में घोलकर इसे खूब हिलाकर पीना चाहिए। बीजों और भूसी को एक कप पानी में डालकर लगभग 2 घंटे तक भिगों दें, जब पूरा लुवाब बन जाए तब इसे चीनी या मिश्री मिलाकर खाने से लाभ होता है।
दोषों को दूर करने वाला : शहद ईसबगोल के गुणों को सुरक्षित रखता है एवं इसमें व्याप्त दोषों को दूर करता है।
तुलना : इसकी तुलना विहीदाना से की जा सकती है।
मात्रा : ईसबगोल की मात्रा 6 ग्राम से लेकर 9 ग्राम तक दिन में 2 बार ज्यादा से ज्यादा 20 ग्राम तक लेना चाहिए।

गुण : ईसबगोल गर्मी, प्यास, गर्मी के बुखार, कण्ठ (गला), हृदय (दिल) और जीभ की खरखराहट तथा खून के रोगों को दूर करता है। यह आंतों के घाव, आंव और मरोड़ में लाभदायक होता है। ईसबगोल को भूनकर खाने से यह मल को रोकता है। ईसबगोल के लुबाब से कुल्ले करने से मुंह के दाने को दूर करते हैं। ईसबगोल को पीसकर लेप करने से यह गर्मी से हुई सूजन को दूर करता है। परन्तु कूट देने से यह विषाक्त हो जाता है। यह बहुत ही पुष्टकारक होता है। यह कुछ रक्त-कारक और पित्त-नाशक होता है।

कमल के फूल

परिचय:

कमल के फूल कीचड़ भरे पानी में खिलते हैं और यह बहुत ही सुन्दर होते हैं। कमल खुशबूदार, आकर्षित एवं लाल, गुलाबी, सफेद व नीले रंग के होते हैं। कमल के पत्ते ऊपर से हरे और नीचे से हल्के सफेद होते हैं। इसके पत्ते चिकने होते हैं जिससे इस पर पानी की बूंद नहीं ठहरती है। इसके पत्ते के नीचे की डण्डी को कमल की नाल कहते हैं और इसके जड़ को विस कहते हैं। कमल से 5-6 छिद्रों वाली नाल निकलती है जिस पर फूल व पत्ते लगते हैं। कमल के एक फूल में 15 से 20 बीज होते हैं जिसे कमलगट्टे कहते हैं। कच्चा बीज कोमल व सफेद होता है और पककर सूखने पर काले रंग के हो जाते हैं। कमल के फूल मार्च-अप्रैल के महीने में खिलते हैं।
आयुर्वेद के अनुसार : कमल शीतल और स्वाद में मीठा होता है। यह कफ, पित्त, खून की बीमारी, प्यास, जलन, फोड़ा जहर को खत्म करता है। हृदय के रोगों को दूर करने और त्वचा का रंग निखारने के लिए यह एक अच्छी औषधि है। जी मिचलना, दस्त, पेचिश, मूत्र रोग, त्वचा रोग, बुखार, कमजोरी, बवासीर, वमन, रक्तस्राव आदि में इसका प्रयोग लाभकारी होता है।
वैज्ञानिकों के अनुसार : कमल का रासायनिक विश्लेषण करने से पता चला है कि इसके पत्ते में न्यूसिफेरिन व रोमेरिन रस होता है।
कमल के सूखे बीज में विभिन्न तत्त्व पाए जाते हैं-
तत्त्व मात्रा
कार्बोहाइड्रेट 66.6 प्रतिशत
प्रोटीन 17.2 प्रतिशत
वसा 2.4 प्रतिशत
लोहा थोड़ी मात्रा में
कैल्शियम थोड़ी मात्रा में
शर्करा थोड़ी मात्रा में
एस्कार्बिक एसिड थोड़ी मात्रा में
विटामिन- ´बी´ थोड़ी मात्रा में
विटामिन- ´सी´ थोड़ी मात्रा में
विभिन्न भाषाओं में नाम :

संस्कृत अम्बुज, पद्म, पुंडरीक।
हिन्दी . कमल, सफेद कमल, लाल कमल, नीला कमल।
अंग्रेजी . लोटस।
लैटिन . निलुम्बों न्यूसिफेरा।
मराठी . कमल, तांबले, पांढरे कमल।
गुजराती धोला कमल।
बंगाली . पद्म।

मिर्च

मिर्च  : बड़े काम की चीज है
 
 
मिर्च, नाम आते ही कुछ लोग सी-सी करने लगते हैं तो कुछ लोग चटखारे लेने लगते हैं. हमारे देश में यही तो समस्या है की एक स्वाद के बारे में दो लोगों की राय कभी एक नहीं हो सकती. पर इसमें बेचारी मिर्च का क्या दोष . वह फायदा तो सभी को एक ही जैसा पहुँचाती है. मिर्च सिर्फ तीती या कडवी ही नहीं होती, बहुत सारे रोगों में तो ये किसी बहुत अच्छी मिठाई से भी ज्यादा मीठी होती है. आइये आज इसी को चख कर देख लेते हैं---
 
आपको पता है, इसमें कितने सारे तत्व पाए जाते हैं-
अमीनो एसिड, एस्कार्बिक एसिड, फोलिक एसिड, सिट्रीक एसिड, ग्लीसरिक एसिड, मैलिक एसिड, मैलोनिक एसिड, सक्सीनिक एसिड, शिकिमिक एसिड, आक्जेलिक एसिड, क्युनिक एसिड, कैरोटीन्स , क्रिप्तोकैप्सीन, बाई-फ्लेवोनाईड्स, कैप्सेंथीन, कैप्सोरूबीन डाईएस्टर, आल्फा-एमिरिन, कोलेस्टराल, फ़ाय्तोईन, फायटोफ़्लू, कैप्सीडीना, कैप्सी-कोसीन, आल्फा-एमीरीन आदि.

 
इसमें जो फोलिक एसिड है वह ऐसा तत्व है जिसके कारण सफेदमूसली का महत्व बढ़ जाता है और यही तत्व गर्भवती महिलाओं को सिर्फ इसलिए दिया जाता है ताकि बच्चे का खासकर बच्चे के प्रजनन अंगों का ठीक से विकास हो सके.
  1. अगर आपको किसी कुत्ते ने काट लिया है तो अस्पताल भागने से पहले घर में अगर लालमिर्च हो तो उसकी चटनी पीस कर काटने वाले स्थान पर लगा लीजिये.यह इंजेक्शन का विकल्प है, यह चटनी लगाने के बाद फिर इंजेक्शन की जरूरत नहीं पड़ती. ये ऐसे लोगों के लिए लाभदायक है जिनके घर से अस्पताल का रास्ता एक घंटे से ज्यादा समय का हो.
  2. खून में हीमोग्लोविन कम हो जाए तो प्रतिदिन कम से कम ६ हरी मिर्च खाएं, कच्ची ही .५-६ दिनों में हिमोग्लोविन सामान्य हो जाएगा. जिनके ब्लड में प्लेटलेट्स घट जाती हैं, उन्हें भी ये कच्ची हरी मिर्च बहुत फायदा पहुँचाती है.
  3. बदन में दाद-खाज खुजली या किसी प्रकार का चर्म रोग हो जाए तो आप सरसों के तेल में लालमिर्च का पावडर खौलाइये, फिर इस तेल को ठंडा करके छान लीजिये और पूरे बदन पर या खुजली वाले स्थान पर रो लगा कर सो जाए .२१-२२ दिनों में सफ़ेद हो गयी त्वचा भी सामान्य रंग में आना शुरू कर देती है.
  4. कालरा में एक चम्मच मिर्च का पावडर एक चम्म्ह नमक के साथ पानी में उबालिए ,फिर उस पानी को चाय समझ के पी जाए. दिन में दो बार कीजिए ,जबरदस्त लाभ होता है.
  5. पेट दर्द कर रहा हो तो हरी मिर्च या लाल मिर्च के दो ग्राम बीज गुनगुने पानी से निगल लीजिये.
  6. किसी ने ज्यादा शराब पी ली है और हैंगओवर हो गया है तो मिर्च का २ चुटकी पावडर गुनगुने पानी में मिला कर दिन में दो तीन बार पिला दीजिये.
  7. सन्निपात के रोगी को अगर एक मिर्च पीस कर किसी तरह पिला दी जाए तो मूर्छा फ़ौरन ख़त्म हो जाती है.
  8. जब जलवायु परिवर्तित होने लगे तो हरी मिर्च का सेवन ज्यादा कर देना चाहिए.
लेकिन लाल मिर्च के सेवन से हमेशा बचना चाहिए, यह कई सारे रोग उत्पन्न कर देती है, रोज लाल मिर्च खाने से लीवर कमजोर हो जाता है, अंडकोष, किडनी, आँखे भी कमजोर हो जाते हैं. पेट की पाचन शक्ति कम हो जाती है और कैंसर होने के रास्ते खुक्ल जाते हैं| इसलिए लालमिर्च का सिर्फ बाहरी उपयोग ही करना चाहिए, इसे खाने से परहेज करना चाहिए. आयुर्वेद के अनुसार लालमिर्च का ज्यादा उपयोग या नियमित उपयोग संखिया के जहर का काम करने लगता है. ब्लड भी अशुद्ध हो जाता है.
 
जबकि हरी मिर्च खाने से मुंह की लार अधिक उत्पन्न होती है जो भोजन को अच्छी तरह पचती तो है ही ,गैस नहीं बनने देती है और हृदय को तथा प्रजनन शक्ति को ताकत प्रदान करती है. मल- मूत्र विसर्जन के रास्ते में आने वाली सारी बाधाएं दूर करती है.
 
इन आलेखों में पूर्व विद्वानों द्वारा बताये गये ज्ञान को समेट कर आपके समक्ष सरल भाषा में प्रस्तुत करने का छोटा सा प्रयत्न मात्र है .औषध प्रयोग से पूर्व किसी मान्यताप्राप्त हकीम या वैद्य से सलाह लेना आपके हित में उचित होगा|


सामान्यत: मिर्च स्वास्थ्य के लिए अच्छा नहीं माना गया है। हरी मिर्च और लाल मिर्च के बिना भारतीय भोजन का स्वाद अधूरा है। लेकिन लाल मिर्च पर किए गए शोधों और आयुर्वेद के अनुसार लाल मिर्च का सेवन नुकसानदायक नहीं बल्कि फायदेमंद भी है तो आइए आज हम आपको बताते हैं लाल मिर्च के कुछ ऐसे ही गुणों और आयुर्वेदिक उपयोगों के बारे में। लाल मिर्च कई तरह के उपयोगी तत्व भी पाएं जाते हैं। जैसे अमीनो एसिड, एस्कार्बिक एसिड, फोलिक एसिड, सिट्रीक एसिड, मैलिक एसिड, मैलोनिक एसिड, सक्सीनिक एसिड, शिकिमिक एसिड, आक्जेलिक एसिड, क्युनिक एसिड, कैरोटीन्स , क्रिप्तोकैप्सीन, बाई-फ्लेवोनाईड्स, कैप्सेंथीन, कैप्सोरूबीन डाईएस्टर, आल्फा-एमिरिन, कोलेस्टराल, फ़ाय्तोईन, फायटोफ्लू, कैप्सीडीना, कैप्सी-कोसीन, आदि तत्व पाएं जाते हैं। 
  1. - इसके सेवन से मल-मूत्र में आने वाली समस्याएं दूर हो जाती है।
  2. - लाल मिर्च खाना मोटापा कम करने और भोजन के बाद अधिक कैलोरी जलाने में मददगार हो सकता है।
  3. - लाल मिर्च पर किए गए वैज्ञानिक शोध से पता चला है कि इसमें से तत्व मौजूद हैं जो शरीर में उठने वाले दर्द के निवारण के लिए लाभदायक होती है।
  4. - लाल मिर्च की लुगदी बना लें जिस ओर की आंख लाल हो या दर्द हो उसी पैर के अंगूठे पर व लुगदीका लेप करें, यदि दोनों आंख में हो रही हों तो दोनों में करें- 2 घंटे में आंख ठीक हो जायेगी।
  5. - अशुद्ध पानी से पेट में होने वाली परेशानी है तो लाल मिर्च की चटनी को घी में छोंककर खाने से गंदे पानी का दुष्प्रभाव नहीं पड़ता है। 
  6. अगर किसी को सांप कांट ले तो मिर्च कड़वी नहीं लगती । मिर्च खिलाने से विष खत्म होगा।
  7. - विच्छू के काटने पर लाल मिर्च का लेप लगायें ठंडक पड़ जायेगी।
  8. - गर्मी में हरी मिर्च खाने से इसके बीज अगर आपके पेट में हैं तो हैजा का डर नहीं होता है।
  9. - हरी मिर्च खाने के साथ खायें। अचार खायें इसमें विटामिन सी पर्याप्त मात्रा में होता है।
  10. - यदि गले में इन्फेंकशन हो गया हो या खांसी हो तो लाल मिर्च की चटनी अवश्य ग्रहण करें।
  11. - आपको जिस तरह पसंद हो वैसे लाल मिर्च खायें। लाल मिर्च बेसन में डालकर पकोड़े बनाकर खाएं।

मूँगफली(Peanut)

क्यों है मूँगफली एक पौष्टिक भोजन? Why peanut is nutritious?


'गरीबों का काजू' के नाम से मशहूर मूँगफली काजू से ज्य़ादा पौष्टिक है। परन्तु मूँगफली खाने वाले यह नहीं जानते, मूँगफली में सभी पौष्टिक तत्व पाए जाते हैं। मूँगफली खाकर हम अनजाने में ही इतने पोषक तत्व ग्रहण कर लेते हैं, जिसका हमारे शरीर को बहुत फायदा होता है। मूँगफली में प्रोटीन, वसा, शर्करा,विटामिन, खनिज, रुक्षांश प्रचुर मात्रा में पाए जाते हैं। शोधों से यह बात प्रकाश में आई है कि मूँगफली में कैल्शियम और विटामिन डी अधिक मात्रा में होती है। मूँगफली में प्रोटीन की मात्रा 25 प्रतिशत से भी अधिक होती है। मूंगफली विटामिन ई का तो भंडार होता है।

 
आधी मुट्ठी मूगफली में 426 कैलोरीज़ होती हैं, 15 ग्राम कार्बोहाइड्रेट होता है, 17 ग्राम प्रोटीन होता है और 35ग्राम वसा होती है। इसमें विटामिन ई , विटामिन के और बी6 भी प्रचूर मात्रा में होती है। यह आयरन,नियासिन, फोलेट, कैल्शियम और जिंक का अच्छा स्रोत हैं।
 
पोषक तत्वों की तुलनात्मक दृष्टि से मूँगफली का अध्ययन इस प्रकार है………
 
  • इसमें प्रोटीन की मात्रा मांस की तुलना में 1.3 गुना, अण्डो से 2.5 गुना एवं फलो से 8 गुना अधिक होती हैं।
  • 100 ग्राम कच्ची मूँगफली में, 1 लीटर दूध के बराबर प्रोटीन होता है । 
  • मात्र 250 ग्राम भूनी मूँगफली में जिस मात्रा में खनिज और विटामिन पाए जाते हैं, वो 250 ग्राम मांस से भी प्राप्त नहीं किए जा सकते।
  • 250 ग्राम मूँगफली के मक्खन से , 300 ग्राम पनीर, 2 लीटर दूध या 15 अंडों के बराबर ऊर्जा प्राप्त की जा सकती है।
  • एक अंडे के मूल्य के बराबर मूँगफलियों में जितनी प्रोटीन व ऊष्मा होती है, उतनी दूध व अंडे से संयुक्त रूप में भी प्राप्त नहीं होती।
 
मूँगफली के लाभ :
 
  1. पौष्टिकता से भरपूर मूँगफली में कैंसर प्रतिरोधी तथा कॉलेस्ट्रॉल कम करने की क्षमता है।
  2. इसका संबंध ह्रदय की बीमारियों को घटाने में भी महत्वपूर्ण है।
  3. कच्ची मूँगफली रोज खाने से नवजातक माताओं के दूध में वृद्धि होती है।
  4. यह पाचन शक्ति को बढ़ाती है।
  5. मूँगफली या उससे निर्मित खाद्य सामग्री के उपयोग से रक्त स्त्राव की बीमारी में आराम मिलता है।
  6. भुनी मूँगफली एण्टीआक्सिडेंट्स का अच्छा स्रोत है। 
  7. बिना नमक वाली मूँगफली में मोनोसैचुरेटेड वसा बहुत अधिक मात्रा में होती है और यह स्वस्थ धमनियों के लिए अच्छी होती है। धमनियों को स्वस्थ रखना चाहते हैं, तो रक्त में कालेस्ट्रानल के स्तर को ठीक रखें।
  8. मूँगफली में विटामिन ई का भंडारण होता है और यह कैंसर और हृदय संबंधी बीमारियों का खतरा कम करती है। 
  9. मूँगफली महिलाओं और पुरूषों में हार्मोन्स के विकास के लिए भी अच्छी होती है।
  10. शोधों से ऐसा पता चला है कि मूँगफली में कैल्शियम और विटामिन डी अधिक मात्रा में होता है और यह दांतों के स्वास्‍थ्‍य के लिए भी अच्छा होता है।
 
मूँगफली के बारे में ओर रोचक बाते :
 
मूँगफली एक अखरोट की तरह का नट नहीं है बल्कि यह एक फली की नस्ल से संबंधित है ।
 
 
फाइटोस्टेरॉल (phytosterols) 
  • मूँगफली में किसी भी अन्य नट की तुलना में अधिक प्रोटीन, नियासिन, फोलेट और फाइटोस्टेरॉल (phytosterols) पादपरसायन होता है।
  • मूँगफली में अंगूर,अंगूर का रस, हरी चाय, टमाटर, पालक, ब्रोकोली, गाजर से अधिक उच्च एंटीऑक्सीडेंट क्षमता है।
  • मूँगफली चार प्रकार की होती हैं -रनर, वर्जीनिया, स्पेनिश, और वालेंसिया।
  • मूँगफली सितंबर और अक्टूबर में नयी आ जाती है।
  • फसल रोपण विधि से लगाई जाती है मूँगफली का विकास चक्र 120 से 160 दिन या पाँच महीने होता है।
 
मूँगफली का मक्खन 
मूँगफली और मूँगफली का मक्खन 30 में अधिक आवश्यक पोषक तत्वों और फाइटोन्युट्रीयेंट्स phytonutrients होते हैं।
मूँगफली स्वाभाविक रूप से कोलेस्ट्रॉल मुक्त हैं।
मूँगफली का पौधा मूल रूप से दक्षिण अमेरिका में जन्मा है मूँगफली का पौधा छोटे छोटे पीले फूल पैदा करता है।
एक परिपक्व मूँगफली का पौधे में 40 फली (Pods) होती है यानी एक पोधा 40 मूँगफली पैदा करता है।

नियासिन (Niacin) एक महत्वपूर्ण विटामिन बी है जोकि भोजन को ऊर्जा में परिवर्तित करने में मदद करता है मूँगफली नियासिन का एक बहुत अच्छा स्रोत माना जाता है।

फोलेट (Folate) 
 
फोलेट (Folate) कोशिका विभाजन में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है जिसका अर्थ है कि पर्याप्त फोलेट का सेवन गर्भावस्था और बचपन के दौरान जब ऊतकों तेजी से बढ़ रहे हैं तब विशेष रूप से महत्वपूर्ण है मूँगफली फोलेट का एक अच्छा स्रोत है।
 
एंटीऑक्सिडेंट के रूप में मूँगफली .....
 

  1. विटामिन ई एक बेहतरीन आहार एंटीऑक्सिडेंट होता है कि आक्सिजनित तनाव, हानिकारक शारीरिक प्रक्रिया से कोशिकाओं की रक्षा में मदद करता है।
  2. मूँगफली विटामिन ई का एक अच्छा स्रोत है।
  3. रेशा फाइबर का पाचन तंत्र को स्वस्थ बनाए रखने में महत्वपूर्ण योगदान है. मूँगफली फाइबर का एक अच्छा स्रोत है।
  4. मोनोअनसेचुरेटेड और पॉलीअनसेचुरेटेड दोनों प्रकार की वसा एक स्वस्थ आहार के लिए योगदान स्वरूप है मूँगफली और मूँगफली के मक्खन के एक बार के आहार में 4.5 ग्राम पॉलीअनसेचुरेटेड वसा और 8 ग्राम मोनोअनसेचुरेटेड वसा शामिल होती है।
  5. मूँगफली शरीर में गर्मी पैदा करती है, इसलिए सर्दी के मौसम में ज्यादा लाभदायक है। यह खाँसी में उपयोगी है व मेदे और फेफड़े को बल देती है। 
  6. भोजन के बाद यदि 50 या 100 ग्राम मूँगफली प्रतिदिन खाई जाए तो सेहत बनती है, भोजन पचता है, शरीर में खून की कमी पूरी होती है।
  7. इसे भोजन के साथ सब्जी, खीर, खिचड़ी आदि में डालकर नित्य खाना चाहिए। मूँगफली में तेल का अंश होने से यह वायु की बीमारियों को भी नष्ट करती है। 
  8. सर्दियों में त्वचा में सूखापन आ जाता है। जरा सा मूँगफली का तेल, दूध और गुलाबजल मिलाकर मालिश करें। बीस मिनट बाद स्नान कर लें। इससे त्वचा का सूखापन ठीक हो जाएगा। 
  9. मुट्ठीभर भुनी मूँगफलियाँ निश्चय ही पोषक तत्वों की दृष्टि से लाभकारी हैं। 
  10. तो देखा कितने गुण हैं मूँगफली में .....
  11. आओ इसे अपने आहार का एक मुख्य भाग बनाएँ और इस के बेहतरीन गुणों का लाभ उठायें ।

मूली के उपयोगी घरेलू नुस्खे

मूली स्वयं हजम नहीं होती, लेकिन अन्य भोज्य पदार्थों को पचा देती है। भोजन के बाद यदि गुड़ की 10 ग्राम मात्रा का सेवन किया जाए तो मूली हजम हो जाती है।

* मूली का रस रुचिकर एवं हृदय को प्रफुल्लित करने वाला होता है। यह हलका एवं कंठशोधक भी होता है।
* घृत में भुनी मूली वात-पित्त तथा कफनाशक है। सूखी मूली भी निर्दोष साबित है। गुड़, तेल या घृत में भुनी मूली के फूल कफ वायुनाशक हैं तथा फल पित्तनाशक।
* यकृत व प्लीहा के रोगियों को दैनिक भोजन में मूली को प्राथमिकता देनी चाहिए।
* उदर विकारों में मूली का खार विशिष्ट गुणकारी है।
* मूली के पतले कतरे सिरके में डालकर धूप में रखें, रंग बादामी हो जाने पर खाइए। इससे जठराग्नि तेज हो जाती है।
* मूली के रस में नमक मिलाकर पीने से पेट का भारीपन, अफरा, मूत्ररोग दूर होता है।
* मूली की राख को सरसों के तेल में फेंटकर मालिश करने से शोथ दूर होता है। पांडु व पीलिया में मूली के पत्तों का रस निकाल लें और आग पर चढ़ा दें। उबाल आने पर पानी को छान लें। दो तोला (20 ग्राम) लाल चीनी मिलाएँ। 9-10 दिनों तक सेवन करें। इससे नया खून बनना प्रारंभ हो जाता है।

मूली और घरेलू चिकित्सा
 

मूली कच्ची खायें या इस के पत्तों की सब्जी बनाकर खाएं, हर प्रकार से बवासीर में लाभदायक है।
गुर्दे की खराबी से यदि पेशाब का बनना बन्द हो जाए तो मूली का रस दो औंस प्रति मात्रा पीने से वह फिर बनने लगता है।
मूली खाने से मधुमेह में लाभ होता है।
एक कच्ची मूली नित्य प्रातः उठते ही खाते रहने से कुछ दिनों में पीलिया रोग ठीक हो जाता है।
गर्मी के प्रभाव से खट्टी डकारें आती हो तो एक कप मूली के रस में मिश्री मिलाकर पीने से लाभ होता है।
मासिक धर्म की कमी के कारण लड़कियों के यदि मुहाँसे निकलते हों तो प्रातः पत्तों सहित एक मूली नित्य खाएं।
पौष्टिक गुणों से मालामाल मूली
क्या आप जानते हैं?
औक्सिका मैक्सिको में क्रिसमस की पूर्व संध्या को मूली संध्या के रूप में भी जाना जाता है। इस दिन मूली को विभिन्न पशुओं के आकार में काट कर सजाया जाता है।
अमरीकी 400 मिलियन पाउन्ड मूली प्रतिवर्ष खा कर खतम कर देते हैं। इसमें से अधिकतर का प्रयोग सलाद के रूप में होता है।
प्राचीनकाल में जैतून के तेल के आविष्कार होने से पहले, मिस्र के लोग मूली के बीजों का तेल प्रयोग में लाते थे।
हार्स रैडिश या घोड़ा मूली, मूली नहीं, बल्कि सरसों की जाति का तीखा सुगंध वाला पौधा है।
मूली कृषक सभ्यता के सबसे प्राचीन आविष्कारों में से एक है। ३००० वर्षो से भी पहले के चीनी इतिहास में इसका उल्लेख मिलता है। अत्यंत प्राचीन चीन और यूनानी व्यंजनों में इसका प्रयोग होता था और इसे भूख बढ़ाने वाली समझा जाता था।
यूरोप के अनेक देशों में भोजन से पहले इसको परोसने परंपरा का उल्लेख मिलता है।
मूली शब्द संस्कृत के 'मूल' शब्द से बना है।
आयुर्वेद में इसे मूलक नाम से, स्वास्थ्य का मूल (अत्यंत महत्वपूर्ण) बताया गया है।
आजकल हम लोग अस्पतालों तथा अंग्रेज़ी दवाइयों की दुनिया में इतने खो गए कि उन्हें अपने आसपास उपलब्ध होने वाली, उन शाक-सब्ज़ियों की तरफ़ ध्यान देने का समय ही नहीं मिलता, जो बिना किसी हानि के हमारी अनेक बीमारियों को निर्मूल करने में सक्षम हैं। प्रकृति हमारे लिए शीत ऋतु में इस प्रकार की शाक-सब्ज़ियाँ उदारतापूर्वक उत्पन्न करती है। इन्हीं में से एक है 'मूली'।
मूली में प्रोटीन, कैल्शियम, गन्धक, आयोडीन तथा लौह तत्व पर्याप्त मात्रा में उपलब्ध होते हैं। इसमें सोडियम, फॉस्फोरस, क्लोरीन तथा मैग्नीशियम भी होता है। मूली में विटामिन 'ए' भी होता है। विटामिन 'बी' और 'सी' भी इससे प्राप्त होते हैं।
जिसे हम मूली के रूप में जानते हैं, वह धरती के नीचे पौधे की जड होती हैं। धरती के ऊपर रहने वाले पत्ते से भी अधिक पोषक तत्वों से भरपूर होते हैं। सामान्यत: हम मूली को खाकर उसके पत्तों को फेंक देते हैं। यह गलत आदत हैं। मूली के साथ ही उसके पत्तों का सेवन भी किया जाना चाहिए।
इसी प्रकार मूली के पौधे में आने वाली फलियाँ 'मोगर' भी समान रूप से उपयोगी और स्वास्थ्यवर्धक है।
सामान्यत: लोग मोटी मूली पसन्द करते हैं। कारण उसका अधिक स्वादिष्ट होना है, मगर स्वास्थ्य तथा उपचार की दृष्टि से छोटी, पतली और चरपरी मूली ही उपयोगी है। ऐसी मूली त्रिदोष (वात, पित्त और कफ) नाशक है। इसके विपरीत मोटी और पकी मूली त्रिदोष कारक मानी जाती है।

100 ग्राम मूली में अनुमानित निम्न तत्व हैं : प्रोटीन-०.7 ग्राम, वसा-०.1 ग्राम, कार्बोहाइड्रेट-३.4 ग्राम, कैल्शियम-35 मि.ग्रा., फॉस्फोरस-22 मि.ग्रा, लोह तत्व-०.4 मि.ग्रा., केरोटीन-3 मि.ग्रा., थायेसिन-0.06 मि.ग्रा., रिवोफ्लेविन-0.02 मि.ग्रा., नियासिन-0.5 मि.ग्रा., विटामिन सी-15 मि.ग्रा.।

अनेक छोटी बड़ी व्याधियाँ मूली से ठीक की जा सकती हैं। मूली का रंग सफेद है, लेकिन यह शरीर को लालिमा प्रदान करती है। भोजन के साथ या भोजन के बाद मूली खाना विशेष रूप से लाभदायक है। मूली और इसके पत्ते भोजन को ठीक प्रकार से पचाने में सहायता करते हैं। वैसे तो मूली के पराठें, रायता, तरकारी, आचार तथा भुजिया जैसे अनेक स्वादिष्ट व्यंजन बनते हैं,मगर सबसे अधिक लाभकारी होती है-कच्ची मूली। भोजन के साथ प्रतिदिन एक मूली खा लेने से व्यक्ति अनेक बीमारियों से मुक्त रह सकता है।
 
मूली, शरीर से विषैली गैस कार्बन-डाई-आक्साइड को निकालकर जीवनदायी आक्सीजन प्रदान करती है।

 मूली हमारे दाँतों को मज़बूत करती है तथा हडि्डयों को शक्ति प्रदान करती है। इससे व्यक्ति की थकान मिटती है और अच्छी नींद आती है। मूली खाने से पेट के कीड़े नष्ट होते हैं तथा पेट के घाव ठीक होते हैं।
 
यह उच्च रक्तचाप को नियंत्रित करती है तथा बवासीर और हृदय रोग को शान्त करती है।
इसका ताज़ा रस पीने से मूत्र संबंधी रोगों में राहत मिलती है। पीलिया रोग में भी मूली अत्यंत लाभदायक है। अफारे में मूली के पत्तों का रस विशेष रूप से उपयोगी होता है।
 
मोटापा अनेक बीमारियाँ की जड़ है। मोटापा कम करने के लिए मूली बहुत लाभदायक है। इसके रस में थोड़ा-सा नमक और नीबू का रस मिलाकर नियमित रूप से पीने से मोटापा कम होता है और शरीर सुडौल बन जाता है।

पानी में मूली का रस मिलाकर सिर धोने से जुएँ नष्ट होती हैं। विटामिन 'ए' पर्याप्त मात्रा में होने से मूली का रस नेत्रज्योति बढ़ाने में भी सहायक होता है तथा शरीर के जोड़ों की जकड़न को दूर करता है।
 
मूली सौन्दर्यवर्धक भी है। इसके प्रतिदिन सेवन से रंग निखरता है, खुश्की दूर होती है, रक्त शुद्ध होता है और चेहरे की झाइयाँ, कील-मुहाँसे आदि साफ़ होते हैं। सर्दी-जुकाम तथा कफ-खाँसी में मूली के बीज का चूर्ण विशेष लाभदायक होता है। मूली के बीजों को उसके पत्तों के रस के साथ पीसकर लेप किया जाए तो अनेक चर्म रोगों से मुक्ति मिल सकती है।

मूली के रस में तिल्ली का तेल मिलाकर और उसे हल्का गर्म करके कान में डालने से कर्णनाद, कान का दर्द तथा कान की खुजली ठीक होते हैं। मूली के पत्ते चबाने से हिचकी बन्द हो जाती है।

मूली से अनेक रोगों में भी लाभ मिलता है, एक सप्ताह तक कांजी में डाले रखने तथा उसके बाद उसके सेवन से बढ़ी हुई तिल्ली ठीक होती है और बवासीर का रोग नष्ट हो जाता है। हल्दी के साथ मूली खाने से भी बवासीर में लाभ होता है।
 
मूली के पत्तों के चार तोला रस में तीन माशा अजमोद का चूर्ण और चार रत्ती जोखार मिलाकर दिन में दो बार एक सप्ताह तक नियमित रूप से लेने पर गुर्दे की पथरी गल जाती है।

एक कप मूली के रस में एक चम्मच अदरक का और एक चम्मच नींबू का रस मिलाकर नियमित सेवन से भूख बढ़ती है और पेट संबंधी सभी रोग नष्ट हो जाते हैं।
 
मूली के रस में समान मात्रा में अनार का रस मिलाकर पीने से रक्त में हीमोग्लोबिन बढ़ता है और रक्ताल्पता का रोग दूर होता है। सूखी मूली का काढ़ा बनाकर, उसमें जीरा और नमक डालकर पीने से खाँसी और दमा में राहत मिलती है।

संतरा-Orange

 
परिचय : भारत में नागपुर व झालावाड़ में बड़े पैमाने पर संतरे की खेती होती है। संतरा ठंडा, शक्तिवर्द्धक, अम्ल, मीठा, स्वादिष्ट, खट्टा-मीठा, मूत्रल (पेशाब का बार-बार), क्षुधावर्द्धक (भूख का बढ़ना) है। गर्मी में इसकी खपत सबसे ज्यादा होती है। संतरा लोकप्रिय फल है। संतरे के अंदर विटामिन `ए´, `बी´ और `सी´ तथा कैल्शियम से भरा होता है। यह पाचन में अत्यंत लाभकारी होता हैं। संतरा खून को साफ करता है। संतरे के रस या इससे बनाया गया मार्मेलेड ज्यादा पौष्टिक है। संतरा तन और मन को प्रसन्नता देने वाला फल है। व्रत
और सभी रोगों में संतरा खाया जा सकता है। जिस व्यक्ति की पाचन-शक्ति (भोजन पचाने की क्रिया) खराब हो उनको संतरे का रस 3 गुने पानी में मिलाकर देना चाहिए। संतरा सुबह खाली पेट या खाना खाने के 5 घंटे बाद सेवन करने से सबसे ज्यादा लाभ करता है। एक व्यक्ति को एक बार में 1 या 2 संतरे का सेवन ही उपयुक्त है। संतरे में विटामिन `सी´ भरपूर मात्रा में पाया जाता है। एक व्यक्ति को जितने विटामिन `सी´ की आवश्यकता होती है वह एक संतरा रोजाना खाने से पूरी हो जाती है।
 

 
गुण :
  1. संतरे में विटामिन `सी´ व `डी´ का अद्भुत मिश्रण होता है। यह पेड़ पर ही धूप एवं हवा के संयोग से पक जाता है। संतरा रोग निरोधक शक्ति को बढ़ाता है। इसमें ग्लूकोज व डेक्सटोल 2 ऐसे तत्त्व होते हैं, जो जीवनदायिनी शक्ति से परिपूर्ण होते हैं। इसलिए संतरा न केवल रोगी के शरीर में ताजगी लाता है बल्कि अनेक रोगों के लिए लाभदायक भी होता है।
  2. संतरे के रस में घुलनशील ग्लूकोज, फ्रुक्टोज, सूक्रोज कार्बनिक एसिड भरपूर मात्रा में होते हैं। इसमें विटामिन `सी´, विटामिन `बी´ कॉम्लेक्स, विटामिन `ए´, खनिज तत्त्व, कुछ मात्रा में पौष्टिक पदार्थ एवं अन्य पोषक तत्त्व होने के कारण इसकी गणना पौष्टिक भोजन के रूप में की जाती है। बुखार के रोगी को संतरे का रस देने से शांति और ताकत मिलती है। मुंह सूखने व प्यास लगने की शिकायत दूर होती है। शरीर में खुश्की नहीं बढ़ पाती है। इसके रस को दिन में बार-बार भी पी सकते हैं।
  3. खून साफ करने के लिए व्रत में इसके रसाहार पर अनेक प्रयोग किए गए हैं। इसे शरीर शोधक व लगातार भोजन में जगह देने योग्य बताया गया है।
  4. संतरे में 23 स्वास्थ्यवर्द्धक गुण पाये जाते हैं। यूरोपवासी इसे बहुत उपयोगी मानकर इसे गोल्डन एप्पल के नाम से संबोधित करते हैं।
  5. गर्भवती औरतों को चाहिए कि वे गर्भावस्था के समय रोजाना 1 गिलास संतरे का रस पियें इससे संतान गोरे रंग की उत्पन्न होती है। इसके साथ ही यह गर्भवती की उल्टी को रोकने में सहायता करता है।
  6. रोगी के लिए संतरे का रस पानी, दवा और आहार का काम करता है। यह पेट की बढ़ती गर्मी को रोकता है और मुंह के स्वाद को सुधारता है।
संतरे में पाये जाने वाले तत्व-
 
तत्व मात्रा
प्रोटीन 0.9 प्रतिशत
वसा 0.3 प्रतिशत
कार्बोहाइड्रेट 10.6 प्रतिशत
सल्फर लगभग 1 ग्राम का चौथा भाग /100 ग्राम
तांबा लगभग 1 ग्राम का चौथा भाग /100 ग्राम
लौह लगभग 1 ग्राम का चौथा भाग /100 ग्राम
पोटैशियम लगभग 1 ग्राम का चौथा भाग /100 ग्राम
मैग्नेशियम लगभग 1 ग्राम का चौथा भाग /100 ग्राम
सोडियम लगभग 1 ग्राम का चौथा भाग /100 ग्राम
क्लोरीन लगभग 1 ग्राम का चौथा भाग /100 ग्राम
विटामिन-`ए´ लगभग 1 ग्राम का चौथा भाग /100 ग्राम
विटामिन-`बी´ लगभग 1 ग्राम का चौथा भाग /100 ग्राम
विटामिन-`सी´ लगभग 1 ग्राम का चौथा भाग /100 ग्राम
पानी 87.8 प्रतिशत
कैल्शियम 0.05 प्रतिशत
फॉस्फोरस 0.02 प्रतिशत


औषधीय उपयोग :
 
 
 
चेचक के दाग : संतरे के छिलकों को सुखा कर पीस लें। 4 चम्मच गुलाबजल को मिलाकर लेप बनाकर रोजाना चेहरे पर मलने से चेचक के दाग हल्के हो जाते है।
 


लम्बी उम्र के लिये : 1 गिलास संतरे का रस रोजाना पीने से मनुष्य की उम्र लम्बी होती हैं।



खून की कमी : संतरे का रस रोजाना सेवन करने से खून की कमी, पायरिया, आंखों की जलन, त्वचा के रोग, हाथ-पैर की जलन आदि रोगों में बहुत लाभ मिलता है।



अपच : अपच के रोगियों को चाहिए कि वह संतरे के रस को गर्म करके उसमें काला नमक ओर सोंठ का चूर्ण पीसकर मिला लें। आमाशय के रोग में यह पेय रामबाण का काम करता है।



मधुमेह : 
  1. मधुमेह के रोगियों को संतरा दिया जा सकता है। मानसिक तनाव, हाईब्लडप्रेशर, गर्मी के रोग, अजीर्ण (भूख न लगना), कोष्ठबद्धता (कब्ज) आदि में इसका रस बहुत उपयोगी एवं प्रभावी है।
  2. संतरे के छिलकों को छाया में सुखाकर पीस लें। फिर इस 4 चम्मच चूर्ण को 1 गिलास पानी में उबालकर छान लें और रोजाना पीयें। इससे मधुमेह (डायबिटीज) रोग में लाभ मिलता है।
 
बच्चों के रोग : छोटे बच्चों को संतरे का रस पिलाने से उनका शरीर मजबूत और खून साफ होता है। हडि्डयां मजबूत होती हैं तथा त्वचा निरोग रहती है। पूरे मौसम में यदि संतरे का रस पिलाया जाए तो बच्चे का शारीरिक विकास अच्छा होता है।



पायरिया : 
  1. संतरे के रस को गाय के दूध के साथ सेवन करने से पायरिया रोग, पाचनशक्ति कमजोर होना, कमजोरी, नींद न आना, पुरानी खांसी, आंखों के रोग, उल्टी, पथरी, जिगर के रोगों में बहुत ही लाभ होता है। संतरे में दिल के रोग, वात विकार और पेट के रोगों को दूर करने की अदभुत क्षमता है।
  2. रोजाना संतरा खाने से पायरिया रोग में लाभ होता है। संतरे के छिलकों को छाया में सुखाकर पीस लें और उससे रोज मंजन करें। इससे दान्तों का पायरिया रोग दूर हो जाता है और दांत भी मजबूत होते हैं।